Tuesday, November 23, 2010

बदनाम हुए थे

बदनाम हुए थे जिनके लिए वर्षो पहिले
आज वो चेहरा फिर यद् आ गया
रख लिया था पत्थर दिल पर वर्षो पहिले
आज फिर किसी ने पत्थर हटा दिया
इ जान-एय-जिगर हम तो मार गये थे वर्षो पहिले
आज तुमने वापिस क्यों ज़गा दिया
जी रहे थे ज़िन्दगी-एय-पीरी वर्षो से हम
आज तुने फिर से अहदे-शबाब क्यों भर दिया।

Monday, November 22, 2010

ख़ामोशी से प्यार

तुम सालो साल खामोश रही
तुमी नहीं मालूम हमे ख़ामोशी से ही प्यार है।
तुमने मन-ही-मन मे दी होगी बद दुआये
तुमी क्या पता हमे बद-दुआओ की आदत है।
शायद तुमे इंतजार होगा इज्रार -- मोहबत का
पर हमे इज्रार --मोहबत करना ही नहीं आया।

Tuesday, October 26, 2010

मेरी बंज़र भूमी के vriksh

अरे तुम
तुम ही तो मेरी उर्जा के स्त्रोत हो
तुम अकेले खडे हो
हरे पत्तो से भरे वृक्षहो
शायद कितने ही चकार्वत आये थे
कितनी ई हवाये चली थी
फिर भी तुम खडे के खडे हो
तुमी देख कर ही तो
मे उपजाऊ कहलाया हूँ
नहीं तो कभी का बंज़र हो जाता
दुनिया की नज़रो से ओज़ल हो जाता
एय वृक्ष तुम कभी टूट मत जाना
मुजे तेरे फलो की ज़रुरत नहीं है
चाहे तेरे फल तू किशी को भी दे देना
पर तुम मेरे को छोड़ कर मत जाना
नहीं तो बंज़र भूमी कहलाऊंगा
दुनिया की नज़रो से ओज़ल हो जाऊंगा

बैशाखी

चलते-चलते
पैर थक गये है
उत्साह कम हो चूका है
पैरो मे छाले भी पड़ गये है
सोचता शायद बैशाकिया लेलू
पर नहीं दिल जो ये कहता ही
दुनिया मे मुजे अपंग न समजा जाये
अपंग समज कर तिरष्कृत न हो जाऊ।
बीना पैर टूटे लंगड़ा कहलाऊ
नहीं मुझे बैशाकिया नहीं चाहिये
न लूँगा कभी चाहे मेरी टांग ही क्यों न टूट जाये.



Friday, October 22, 2010